Hartalika Teej pujaHartalika Teej puja

हरतालिका तीज व्रत, आज 6 सितंबर शुक्रवार को मनाया जा रहा है। आज सुहागन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं । शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। प्रतिवर्ष हरतालिका तीज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। यह व्रत मनचाही इच्छा को पूर्ण करने वाला माना जाता है।

(व्रत की कथा इस लेख के अंत में दी गयी है) 

भक्ति, मित्रता और वैवाहिक सुख का उत्सव

हरतालिका तीज एक पावन और रंग-बिरंगा त्योहार है जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में, महिलाओं द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन माता पार्वती की अटूट भक्ति और भगवान शिव के प्रति उनके प्रेम को समर्पित है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं, विशेष पूजा-अर्चना करती हैं और अपने पतियों के स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। लेकिन इस धार्मिक आयोजन से भी बढ़कर, यह त्योहार मित्रता, भक्ति और दृढ़ निश्चय की अद्भुत कहानी को प्रस्तुत करता है।

हरतालिका तीज के अनुष्ठान और उत्सव

1. पूजा की तैयारी:
हरतालिका तीज के अवसर पर महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की मिट्टी की मूर्तियां बनाती हैं। इन मूर्तियों को सुंदर रंगों, आभूषणों और फूलों से सजाया जाता है और इनकी विशेष पूजा की जाती है।

2. श्रृंगार:
इस पावन दिन पर विवाहित महिलाएं अपने सबसे सुंदर वस्त्र—अक्सर हरे रंग की साड़ी या सूट—धारण करती हैं। वे पारंपरिक आभूषण पहनती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती हैं और अपने ससुराल से मिलने वाले विशेष उपहार, जिसे ‘सिंदारा’ कहा जाता है, प्राप्त करती हैं। यह परंपरा विवाह के बंधन की पवित्रता और समर्पण का प्रतीक होती है।

3. शोभायात्राएं और गीत:
समुदाय मिलकर हरतालिका तीज के अवसर पर भव्य शोभायात्राओं का आयोजन करते हैं। महिलाएं पारंपरिक तीज गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं, जिससे पूरे माहौल में उत्सव का आनंद व्याप्त हो जाता है। कुछ क्षेत्रों में माता पार्वती की मूर्ति को पालकी में बिठाकर शहर में घुमाया जाता है, जो देवी की दिव्य उपस्थिति का प्रतीक होती है।

4. पूजा सामग्री:
पूजा में फलों, फूलों और विशेष मिठाइयों का भोग चढ़ाया जाता है। महिलाएं विशेष थाली सजाती हैं जिसमें सिंदूर, चूड़ियाँ और लाल दुपट्टे होते हैं, जो विवाहित महिलाओं की स्थिति और उनके वैवाहिक जीवन की समृद्धि की कामना को दर्शाते हैं।

हरतालिका तीज की कथा (सार)

हरतालिका तीज की कथा हिन्दू पौराणिक कथाओं पर आधारित है, जो माता पार्वती और भगवान शिव के प्रति उनकी अटूट भक्ति की कहानी बताती है। कथा के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव से अत्यंत प्रेम करती थीं, लेकिन शिवजी उनकी उपस्थिति से अनजान थे। माता पार्वती ने कई वर्षों तक हिमालय में कठोर तपस्या की, बिना भोजन और जल के, ताकि भगवान शिव को प्रसन्न कर सकें।

माता पार्वती के पिता चाहते थे कि उनकी बेटी का विवाह भगवान विष्णु से हो, लेकिन माता पार्वती का समर्पण सिर्फ भगवान शिव के लिए था। अपने मित्रों की मदद से, पार्वती जंगल में तपस्या करती रहीं। उनकी सहेलियों ने उन्हें सुरक्षित जंगल में ले जाकर उनकी तपस्या जारी रखने में मदद की। इसी घटना से ‘हरित’ (अपहरण) और ‘आलिका’ (सहेली) शब्द जुड़े, जिससे इस त्योहार का नाम हरतालिका पड़ा।

माता पार्वती की निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। यह पवित्र घटना भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुई, जिसे आज हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है।

हरतालिका तीज का महत्व

हरतालिका तीज केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह प्रेम, भक्ति और दृढ़ निश्चय का उत्सव है। माता पार्वती की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची आस्था और अटूट विश्वास के बल पर कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उनकी सहेलियां, जिन्होंने उनकी मदद की, यह दर्शाती हैं कि किसी भी कठिन परिस्थिति में मित्रता और सहयोग का महत्व कितना बड़ा होता है।

इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और माता पार्वती के समान अपने पतियों के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन की पूजा से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है, और पति-पत्नी के बीच प्रेम का बंधन और मजबूत होता है।

कुछ क्षेत्रों में, इस त्योहार की शोभायात्राओं में हाथी और ऊंटों का भी समावेश होता है, जिससे त्योहार का आकर्षण और बढ़ जाता है। ये शोभायात्राएं माता पार्वती की दिव्य यात्रा का प्रतीक होती हैं, जो उन्होंने भगवान शिव से विवाह करने के लिए की थी।

मित्रता और भक्ति का उत्सव

हरतालिका तीज न केवल वैवाहिक सुख का प्रतीक है, बल्कि यह मित्रता और सहयोग की महत्ता को भी उजागर करता है। माता पार्वती की सहेलियों ने उनकी सहायता करके उन्हें उनका लक्ष्य प्राप्त करने में मदद की, और यह हमें यह सिखाता है कि सच्चे मित्र कठिन समय में हमेशा साथ खड़े होते हैं।

माता पार्वती की कहानी एक प्रेरणादायक कथा है, जो बताती है कि कैसे एक महिला ने अपने दृढ़ निश्चय और भक्ति से भगवान शिव का प्रेम पाया। यह त्योहार महिलाओं के समर्पण और भक्ति का प्रतीक है, जो अपने जीवनसाथी और परिवार के लिए अपनी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ यह व्रत रखती हैं।

हरतालिका तीज एक सुंदर त्योहार है जो भक्ति, मित्रता और प्रेम का उत्सव मनाता है। इस दिन महिलाएं अपने पतियों के लिए व्रत रखती हैं, पूजा करती हैं, और माता पार्वती और भगवान शिव की प्रेम कथा को याद करती हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करता है, बल्कि यह हमें सच्चे प्रेम, मित्रता, और समर्पण की शिक्षा भी देता है।

भारत में इस पवित्र अवसर को पूरे हृदय से मनाया जाता है, जो हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

व्रत कथा


डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

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