Gyanvapi case: वाराणसी, भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां हर कोने से धार्मिक और सांस्कृतिक विचारों का अभिवादन होता है। आज इसी वाराणसी के जिला कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष के हक में फैसला दे दिया है।
कोर्ट का आदेश
वाराणसी की एक अदालत ने फैसले में, हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पूजा करने का अधिकार दे दिया है और साथ में जिला प्रशासन को आदेश दिया है कि 7 दिन के अंदर इसकी व्यवस्था करें।
तहखाने का इतिहास
हिंदू पक्ष का दावा है कि 1993 तक ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा होती थी, लेकिन दिसंबर 1993 के बाद सरकार ने उन्हें रोक दिया । हिंदू पक्ष के अनुसार इस रोक के कारण इस तहखाने में होने वाले पूजा-पाठ, भजन और संस्कार रुक गए थे। कथित तौर पर, 1993 में जो रोक लगाई गई थी उसके लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।
हिंदू पक्ष के दावे
पक्ष का दावा है कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बिना किसी कारण तहखाने में पूजा पर रोक लगा दी थी। उनके वकील शंकर जैन ने बताया है कि “ब्रिटिश शासनकाल में भी तहखाने पर व्यास जी के परिवार का आधिपत्य था और उन्होंने दिसंबर 1993 तक वहां पूजा अर्चना की है।” उन्ही के नाम पर इस तहखाने का नाम पड़ा -“व्यास जी का तहखाना”।
तहखाने में हिंदू पूजा का अधिकार
ज्ञानवापी मस्जिद में हिंदू पक्ष का दावा है कि तहखाने में मौजूद मूर्तियों की नियमित रूप से पूजा की जानी चाहिए। इसके लिए एक पुजारी को नियुक्त किया जाना चाहिए। हाल ही हुए सर्वे में खुलासा हुआ था कि तहखाने में हिंदू धर्म की पूजा से संबंधित सामग्री, प्राचीन मूर्तियां और धार्मिक महत्व की अन्य सामग्री मौजूद हैं।
मुस्लिम पक्ष की प्रतिक्रिया
मुस्लिम पक्ष इसके खिलाफ है और उनका कहना है कि तहखाने में हिंदू पूजा का आयोजन धार्मिक समर्थन की अनुमति देना गलत है। मुस्लिम पक्ष का विचार है कि यह एक सांस्कृतिक स्थल है जिसमें धार्मिक आचार-विचार की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
जनमत
इस मामले में जनमत विभाजन का शिकार है, जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं। इससे पहले भी इस संदिग्ध मामले पर कई बार कानूनी लड़ाई हुई है, लेकिन अब इसमें नई रूपरेखा तैयार हो रही है और न्यायिक प्रक्रिया जारी है। इस मामले का समाधान निर्णय या सुलह के रूप में हो सकता है, लेकिन इसका असर दोनों समुदायों के बीच बिगड़ते सम्बन्धों पर होगा।
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