शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीशंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से जुड़े विवाद .

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बात करने वाले हैं स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के बारे में और उनसे जुड़े कुछ विवाद जो आज भी चर्चा का विषय बनते हैं। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी प्रमुख हिंदू धर्मगुरु थे और द्वारका शारदा पीठ और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य थे। वह आज हमारे बीच नही हैं, पर उनका जीवन, उनकी शिक्षा और ज्ञान आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है। उनकी पहचान और उनके विचारों से कई विवाद जुड़े हुए हैं। हम आज यहाँ उनसे जुड़े कुछ प्रमुख विवादों का उल्लेख करने वाले हैं।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की जीवन यात्रा

भारतीय आध्यात्मिकता के चित्रपट में, कुछ ही हस्तियाँ स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जितनी बड़ी और स्थायी हैं। 2 सितंबर, 1924 को उनका जन्म मध्य प्रदेश, सिवनी के ग्राम पंचायत “दिघोरी” में हुआ था । उनका वास्तविक नाम पोथीराम उपाध्याय था। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर त्याग दिया था। घर त्यागने के बाद, उन्होंने धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। काशी पहुचने के बाद, लगभग 25 वर्षों की कठोर तपस्या, और दीक्षा लेने के बाद, 1950 में ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाये। उनका पूरा जीवन भक्ति और धर्म प्रति अटूट प्रतिबद्धता की गाथा के रूप में सामने आया। 11 सितंबर, 2022 को उनके निधन से एक युग का अंत हो गया और वह अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।

इनसे जुड़े विवाद :

आश्रमों की बंद सीमाओं से परे, स्वरूपानंद सरस्वती सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के एक मुखर समर्थक के रूप में उभरे। 1950 के दशक के कांग्रेस विरोधी आंदोलन में उनकी भागीदारी और उसके बाद जेल जाना धार्मिकता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक था। स्वामी स्वरूपानंद की वकालत गाय संरक्षण से लेकर हिंदू विरासत स्थलों के संरक्षण तक विभिन्न मोर्चों तक फैली हुई थी।

  1. साईं बाबा के बारे में विवाद: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने साईं बाबा मंदिर में जाने और उनकी पूजा करने का विरोध किया था। उनका कहना था कि साईं बाबा हिंदू देवता नहीं हैं। उनकी पूजा करने से हिंदू धर्म की शुद्धता पर असर पड़ता है। 23 जून 2014 को आयोजित धर्म संसद में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने साईं बाबा पर बयान दिया था। उन्होंने कहा की जो हिन्दू साईं की पूजा करते हैं उनको भगवान राम की पूजा, गंगा में स्नान और हर-हर महादेव का जाप करने का अधिकार नहीं है। इस धर्म संसद में सर्वसम्मति से साईं पूजा का बहिष्कार करने का ऐलान किया गया था। महाराष्ट्र में पड़े सूखे का कारण साईं की पूजा को बताया था।
  2. शनि शिंगणापुर विवाद : – महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति मिलने पर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा था कि महिलाओं को शनि के दर्शन नहीं करना चाहिए। शनि की पूजा से उनका अनिष्ट हो सकता है। उन्होंने कहा था कि शनि दर्शन से महिलाओं का हित नहीं होगा।
  3. राजनीतिक टिप्पणियाँ: जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा, तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह “क्रांतिकारी साधु” के रूप में प्रसिद्ध हुए।स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कई बार भारतीय राजनीति पर तीखे टिप्पणियाँ की हैं। उन्होंने कई राजनेताओं और उनकी नीतियों की आलोचना की है, जिससे राजनीतिक विवाद भी पैदा हुए।वे राम मंदिर निर्माण से राजनेताओं को दूर रखना चाहते थे लेकिन राजनीति और धर्म के मेल के कभी ख़िलाफ़ भी नहीं रहे। उनका झुकाव ज़्यादतर कांग्रेस पर्टइ की तरफ रहा और आरएसएस, बीजेपी पर की बार उन्होंने तीखी प्रतिक्रियाएँ दी ।
  4. राम मंदिर आंदोलन: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने राम मंदिर आंदोलन का समर्थन किया था, लेकिन वे इस मुद्दे पर विश्व हिंदू परिषद (VHP) के साथ मतभेद में थे। उनका मानना था कि इस मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जाना चाहिए।
  5. अन्य धर्मगुरुओं के साथ विवाद: उनके विचार और उपदेश अन्य धर्मगुरुओं से भी कई बार टकराते रहे हैं, जिससे धार्मिक समुदायों में भी विवाद होते रहे हैं।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के विचारों और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों ने हमेशा चर्चा और विवादों को जन्म दिया है, लेकिन इसके बावजूद वे एक महत्वपूर्ण धार्मिक नेता और आध्यात्मिक मार्गदर्शक माने जाते रहे हैं।

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एक विरासत जारी है:

जब हम स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के जीवन और शिक्षाओं पर विचार करते हैं, तो हमें विश्वास और धार्मिकता की स्थायी शक्ति की याद आती है। उनकी अदम्य भावना और अथक सक्रियता आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम करती है। अनिश्चितता से भरी दुनिया में, उनकी विरासत आशा की किरण के रूप में खड़ी है, जो हमें करुणा, अखंडता और आध्यात्मिक ज्ञान के कालातीत मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है।

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स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की स्मृति में, हम न केवल एक श्रद्धेय आध्यात्मिक नेता, बल्कि एक दूरदर्शी व्यक्ति का सम्मान करते हैं, जिनके जीवन में सत्य और न्याय की शाश्वत खोज निहित है। उनकी विरासत हमें अटूट संकल्प और अटूट विश्वास के साथ धार्मिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे।

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