इंडेक्स
- Electoral Bonds क्या है ?
- Electoral Bonds पर विवाद क्या चल रहा है ?
- Electoral Bonds पर कोर्ट का फैसला ?
- क्या कहा कोर्ट ने ?
- विपक्षी दल इलेक्टोरल बॉण्ड्स का विरोध करते रहे हैं?
- आरोपों की लंबी लिस्ट ?
- तो क्या इलेक्टोरल बॉन्ड को मनी बिल के तहत पारित किया जा सकता था?
- किसे कितना फ़ायदा ?
- चुनाव आयोग और आरबीआई की राय ?
- क्या कहती है सरकार ?
- ECI ने डोनर्स की लिस्ट पब्लिक कर दी ।
Electoral Bonds क्या है ?
क्या हैं इलेक्टोरल बॉन्ड्स, जिन्हें लेकर इतनी बहस चल रही है, आइए समझते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रॉमिसरी नोट, ब्याज़ मुक्त बैंकिंग टूल है। यह एक बॉन्ड पेपर जैसा है जिसे बैंक से खरीदा जा सकता है। खरीदने के बाद इसका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक पार्टियों को चन्दा देने में किया जा सकता है। राजनीतिक फ़ंडिंग में पारदर्शिता लाने के उदेश्य से, केंद्र सरकार ने साल 2017 के बजट में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की जानकारी दी थी. साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम संसद से पारित हुई और सरकार ने इसे उसी साल अधिसूचित कर दिया। 2018 में इलेक्टोरल बॉण्ड लाते समय मोदी सरकार का कहना था कि इससे राजनीतिक दलों के पैसे जुटाने के संदेहास्पद तौर-तरीक़ों में सुधार लाया जा सकेगा.

Electoral Bonds पर विवाद क्या चल रहा है ?
इस योजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई हैं. पहली याचिका साल 2017 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और ग़ैर-लाभकारी संगठन कॉमन कॉज़ द्वारा संयुक्त रूप से दायर की गई थी और दूसरी याचिका साल 2018 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने दायर की थी। इस PIL में सबसे पहले, यह तर्क दिया गया कि इस योजना के परिणामस्वरूप भारत में राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता का पूर्ण अभाव हो गया है। इसकी वजह से चुनाव आयोग और देश के आम नागरिकों तक चुनावी चंदों की जानकारी नहीं पहुच पा रही।
Electoral Bonds पर कोर्ट का फैसला ?
इस योजना को money bill के रूप में पारित करने से संसद के ऊपरी सदन – राज्य सभा को दरकिनार किया गया, ऐसा आरोप भी लगाया गया इस याचिका में। जनहित याचिका अक्टूबर 2017 में शुरू की गई थी, वित्त मंत्रालय ने जनवरी 2018 में अपना जवाब दिया और कानून मंत्रालय ने मार्च 2018 में जवाब दिया। मामले की सुनवाई में, 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया। चुनावी फंडिंग प्रणाली, जो सात वर्षों से लागू थी, को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने तत्काल प्रभाव से रोक दिया, जिन्होंने भारतीय स्टेट बैंक को इन बांडों को जारी करना बंद करने का निर्देश दिया और इस योजना को “आरटीआई का उल्लंघन” कहा।
क्या कहा कोर्ट ने ?
कोर्ट ने ये कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को गोपनीय रखना संविधान के अनुच्छेद 19(1) और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. इस मामले पर उस समय के भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने इस योजना का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ये योजना राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदों में “सफेद धन” के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है।
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विपक्षी दल इलेक्टोरल बॉण्ड्स का विरोध करते रहे हैं?
भारत सरकार ने इस योजना की शुरुआत करते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश में राजनीतिक फ़ंडिंग की व्यवस्था को साफ़ कर देगा. लेकिन पिछले कुछ सालों में विपक्षी दलों ने ये सवाल बार-बार उठाया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी गई है, इसलिए इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल सकता है। उनका आरोप यह था कि यह योजना बड़े कॉर्पोरेट घरानों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए बनाई गई थी.
आरोपों की लंबी लिस्ट ?
यह भी आरोप लगा कि इस योजना की वजह से भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा असीमित राजनीतिक दान कर सकती हैं । यह चुनावी भ्रष्टाचार को वैध बना देता है। एक और आरोप यह है की एफ़सीआरए में संशोधन किया गया ताकि भारत में विदेशी कंपनियों को भारतीय राजनीतिक दलों को फ़ंड देने की अनुमति मिल सके। इस वजह से अपने एजेंडा रखने वाले अंतरराष्ट्रीय लॉबिस्टों को भारतीय राजनीति और लोकतंत्र में दख़ल देने का मौक़ा मिलता है। ये बात भी बार-बार उठाई गई कि चूंकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं था तो इस विषय को मनी बिल में डाल दिया ताकि उसमें राज्यसभा का बिल्कुल भी हस्तक्षेप न हो और आसानी से पारित करवाया जा सके।

तो क्या इलेक्टोरल बॉन्ड को मनी बिल के तहत पारित किया जा सकता था?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के अनुसार, किसी विधेयक को धन विधेयक माना जा सकता है यदि वह विशेष रूप से वित्तीय मामलों से संबंधित हो। इन मामलों में शामिल हैं: कर, सार्वजनिक व्यय, उधार, सरकारी खर्च। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ फ़िलहाल इस सवाल पर विचार नहीं करेगी क्योंकि कब किसी विधेयक को धन विधेयक नामित किया जा सकता है यह सरकार तय करती है।
किसे कितना फ़ायदा ?
चुनाव निगरानी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2016-17 और 2021-22 के बीच पांच वर्षों में कुल सात राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉण्ड से कुल 9,188 करोड़ रुपये मिले. इस 9,188 करोड़ रुपये में से अकेले भारतीय जनता पार्टी की हिस्सेदारी लगभग 5272 करोड़ रुपये थी. यानी कुल इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए दिए गए चंदे का क़रीब 58 फ़ीसदी बीजेपी को मिला. इसी अवधि में कांग्रेस को इलेक्टोरल बॉन्ड से क़रीब 952 करोड़ रुपये मिले, जबकि तृणमूल कांग्रेस को 767 करोड़ रुपये मिले. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच राष्ट्रीय पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये मिलने वाले चंदे में 743 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई. वहीं दूसरी तरफ इसी अवधि में राष्ट्रिय पार्टियों को मिलने वाला कॉर्पोरेट चंदा केवल 48 फ़ीसदी बढ़ा.
चुनाव आयोग और आरबीआई की राय ?
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के सामने दायर एक हलफ़नामे में चुनाव आयोग ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक फ़ंडिंग में पारदर्शिता को ख़त्म कर देंगे और इनका इस्तेमाल भारतीय राजनीति को प्रभावित करने के लिए विदेशी कॉर्पोरेट शक्तियों को आमंत्रण देने जैसा होगा. चुनाव आयोग ने ये भी कहा था कि कई प्रमुख क़ानूनों में किए गए संशोधनों की वजह से ऐसी शेल कंपनियों के खुल जाने की संभावना बढ़ जाएगी, जिन्हें सिर्फ़ राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के इकलौते मक़सद से बनाया जाएगा. एडीआर की याचिका के मुताबिक़, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बार-बार चेतावनी दी थी कि इलेक्टोरल बॉण्ड का इस्तेमाल काले धन के प्रसार, मनी लॉन्ड्रिंग, और सीमा-पार जालसाज़ी को बढ़ाने के लिए हो सकता है.
क्या कहती है सरकार ?
सरकार का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं । सरकार के मुताबिक़, ये योजना पारदर्शी है और इसके ज़रिये काले धन की अदला-बदली नहीं होती. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कई मौक़ों पर बताया है कि धन प्राप्त करने का तरीक़ा बिल्कुल पारदर्शी है और इसके ज़रिये किसी भी काले या बेहिसाब धन को हासिल करना संभव नहीं है. यह कहते हुए कि यह योजना ‘स्वच्छ धन के योगदान’ और ‘टैक्स दायित्वों के पालन’ को बढ़ावा देती है, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा है कि इस मसले को सार्वजनिक और संसदीय बहस के दायरे में छोड़ दिया जाना चाहिए.
ECI ने डोनर्स की लिस्ट पब्लिक कर दी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने SBI से डोनर्स की लिस्ट मांगी थी, ECI ने लिस्ट को पब्लिक कर दिया है। लिस्ट का सारांश यह है, शीर्ष दानकर्ताओं में ग्रासिम इंडस्ट्रीज, मेघा इंजीनियरिंग और पीरामल एंटरप्राइजेज जैसे प्रमुख कॉर्पोरेट शामिल हैं। फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज (लॉटरी मार्टिन), और मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड शीर्ष दो दानकर्ता हैं।
फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज (लॉटरी मार्टिन) ने ₹1,368 करोड़ के बांड खरीदे। ईसी सूत्रों के मुताबिक मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने ₹980 करोड़ के बांड खरीदे। यह data ईसीआई द्वारा अपलोड किए गए आंकड़ों के अनुसार दिए जा रहे हैं, फ्यूचर गेमिंग ने 2019 से ₹1 करोड़ के 1,368 चुनावी बांड खरीदे ।
चुनावी बांड के माध्यम से धन प्राप्त करने वालों में भाजपा, कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, जेडीएस, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, राजद, आप और सपा हैं।