जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, दिनों की उलटी गिनती शुरू हो रही है, सभी की निगाहें हैदराबाद पर हैं। राजनीतिक हलचल से भरे इस शहर में, एक भयंकर राजनीतिक लड़ाई अंदर ही अंदर चल रही है। जिस लोकसभा सीट पर लंबे समय से असदुद्दीन ओवैसी काबिज हैं उसी सीट पर उन्ही को चुनौती देने के लिए बीजेपी द्वारा के ओवैसी के खिलाफ खड़ा किया गया है –माधवी लता को। सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि क्या ओवैसी के दशकों पुराने प्रभुत्व को इस नवागंतुक द्वारा चुनौती दी जाएगी। इस लेख में, हम दोनों उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि, हैदराबाद की राजनीति के ऐतिहासिक संदर्भ और भारत के लिए इस चुनावी प्रदर्शन पर चर्चा करेंगे।
कौन हैं माधवी लता?
सांसद पद के लिए सैकड़ों उम्मीदवार खड़े होते हैं, उनमें से कुछ ही न्यूज़ चैनलों तक पहुंच पाते हैं। और उन कुछ सांसदों में से, केवल कुछ सांसदों को प्रधान मंत्री मोदी द्वारा प्रचारित किया जाता है। ये अपने आप में अद्भुत बात है, तो माधवी लता कौन हैं? और ये नाम इतना क्यों सुनाया जा रहा है? जवाब है – भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार माधवी लता, हैदराबाद लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार हैं और उनके प्रतिद्वंदी असदुद्दीन ओवैसी हैं.
इस सीट से पिछले 4 बार से नहीं हारे हैं ओवेसी, याने कि पिछले 20 सालों से। ओवैसी पिछले 2 टर्म से और औवेसी से पहले ओवेसी के पिता यहां से 6 बार चुनाव जीत चुके हैं। मतलब पिछले 40 सालों से यहां एक ही परिवार का राज चल रहा है। इसी राज में नारे लगे थे कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटाओ फिर देखो क्या होता है। इसी राज में भीड़ खूब शोर मचाती है। अब इसी सीट से एक नया उम्मीदवार आया है, वो भी फ्रेश एंट्री ।
जिस सीट पर 60 फीसदी मुस्लिम हैं, वहां एक ऐसी महिला, जो सनातन धर्म की कट्टर समर्थक है, अपने प्रतिद्वंदी ओवैसी को सीधे चुनौती दे रही हैं। इतना ही नहीं वह जीतने का दावा भी करती हैं।
तो यह आत्मविश्वास कहां से आता है? और माधवी लता अब तक उस इलाके में क्या कर रही थी?
तो माधवी लता एक समाज सेविका हैं, उन्होंने देश के उस हिस्से में मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के खिलाफ जागृत किया,मुस्लिम महिलाओं के कई समूह बनाए जिन्होंने उन्हें तीन तलाक से लड़ने में मदद की और ऐसी महिलाओं की आर्थिक मदद भी की। माधवी लता एक अस्पताल की संस्थापक भी हैं। इनके मुख्य कामों में, स्वच्छ भारत से प्रेरित होकर शौचालय बनाना, या लड़कियों को उनकी शिक्षा के लिए पैसे या प्रायोजन देना इत्यादि शामिल है।
सनातन को बढ़ावा
दूसरी ओर, वह सनातन धर्म को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। क्योंकि उसे लगता है कि शांति केवल सनातन से ही आ सकती है। माधवी लता हैदराबाद में मुस्लिम लड़कियों को बचाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कई ऐसे मामले सुलझाएँ जहां, कई गरीब परिवार की मुस्लिम लड़कियों को, दुबई से अमीर लोग आ कर खरीद ले जाते हैं। कभी-कभी एक ही लड़की को कई बार बेचा जाता है। मुस्लिम महिलाओं का दर्द, वो मुद्दे जो कभी उठाए ही नहीं गए, वैसे मुद्दों को वो प्रमुखता से उठाती आईं हैं।
हिंदुओं के दर्द पर औवेसी से सवाल.
क्या यह समाज सेवा वाली रणनीति हैदराबाद में काम करेगी? यह अब समय बताएगा, लेकिन हैदराबाद में औवेसी क्यों जीतते हैं?इसका उत्तर जानने के लिए हैदराबाद का इतिहास जानना होगा।
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ओवेसी की विरासत को समझना:
माधवी लता की चुनौती के महत्व को समझने के लिए, असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की राजनीतिक विरासत को समझना आवश्यक है। ओवैसी के परिवार ने दशकों से हैदराबाद की राजनीति पर एक मजबूत पकड़ बनाए रखी है, उनके पिता इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने में उनसे पहले थे। एआईएमआईएम की जड़ें रजाकार आंदोलन से जुड़ी हैं, जो हैदराबाद के इतिहास में अलगाववाद और गैर-मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का एक काला अध्याय है।
क्यों मायने रखती है औवेसी की हार
हैदराबाद चुनाव में औवेसी की हार का समग्र रूप से भारत पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) जैसे मुद्दों पर उनकी पार्टी के कट्टरपंथी रुख और सांप्रदायिक बयानबाजी। इनकी पार्टी द्वारा विभाजनकारी विचारधाराओं का प्रसार। जिन्होंने भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ा, उन रजाकारों को कोई गर्व से अपना पिता और वंसज कहता है। वही मजलिस जो पूरे हैदराबाद को इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहती थी वो अब भी कायम है। इसी वजह से हैदराबाद का चुनाव अहम हो जाता है। इसी पार्टी के एक नेता ने 100 करोड़ से अधिक हिंदुओं से बोलकर चुनौती दी, मंच पर आवाज में गोमांस के नाम पर सामूहिक वध को चुनौती दी । इसके जवाब के लिए हैदराबाद का चुनाव अहम हो जाता है। इसके अतिरिक्त, हैदराबाद की बड़ी मुस्लिम आबादी इसे भारतीय लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद की ताकत का परीक्षण करने के लिए एक महत्वपूर्ण युद्धक्षेत्र बनाती है।
आगे की चुनौतियाँ
माधवी लता के जमीनी स्तर के समर्थन और व्यापक मतदाता आधार को आकर्षित करने के प्रयासों के बावजूद, उन्हें ओवेसी को पद से हटाने में कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी वाले हैदराबाद की जनसांख्यिकी को लंबे समय से ओवेसी की पार्टी के लिए एक गढ़ के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, हिंदू वोटों को एकजुट करने और हाशिये पर पड़े मुस्लिम समुदायों से अपील करने की भाजपा की कोशिशें ओवैसी के मजबूत समर्थन आधार को पार करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती हैं।
विजय का मार्ग:
हालांकि माधवी लता के खिलाफ मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, लेकिन उनके आत्मविश्वास और जमीनी स्तर के मुद्दों के प्रति समर्पण ने उन्हें एक मजबूत दावेदार के रूप में खड़ा कर दिया है। ओवैसी के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए भाजपा के रणनीतिक प्रयास पारंपरिक रूप से गैर-भाजपा क्षेत्रों में पैठ बनाने के पार्टी के दृढ़ संकल्प को दर्शाते हैं। यह देखना अभी बाकी है कि माधवी लता इस गति को चुनावी सफलता में बदल पाती हैं या नहीं, लेकिन उनकी उम्मीदवारी हैदराबाद के राजनीतिक परिदृश्य में यथास्थिति के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती का प्रतिनिधित्व करती है।
भारतीय लोकतंत्र के लिए निहितार्थ:
हैदराबाद चुनाव के नतीजे शहर की सीमाओं से परे भी गूंजेंगे, जो धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के लिए एक लिटमस टेस्ट के रूप में काम करेगा। बढ़ते सांप्रदायिक तनाव और ध्रुवीकरण के युग में, हैदराबाद के मतदाताओं द्वारा चुने गए विकल्प भारतीय राजनीति के भविष्य की दिशा को आकार देंगे। परिणाम चाहे जो भी हो, हैदराबाद की लड़ाई राष्ट्रों की नियति को आकार देने में समावेशी शासन और जमीनी स्तर के आंदोलनों की शक्ति के महत्व को रेखांकित करती है।
क्या माधवी लता बाधाओं पर काबू पा सकेंगी और ओवेसी को सत्ता से बाहर कर पाएंगी या नहीं, यह अनिश्चित बना हुआ है, लेकिन एक बात स्पष्ट है: इस चुनावी लड़ाई का परिणाम हैदराबाद की सड़कों से कहीं दूर तक गूंजेगा, जो आने वाले वर्षों में भारत के राजनीतिक परिदृश्य के भविष्य को आकार देगा।
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