वाराणसी में मंदिरों से साईं की मूर्ति हटाने को लेकर विवाद दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। हाल ही में वाराणसी पुलिस ने साईं मूर्ति हटाने की कोशिश करने के आरोप में सनातन रक्षक दल के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा को गिरफ्तार किया है। बताते चलें कि, हिंदू संगठन ‘सनातन रक्षक दल’ ने यूपी के लगभग एक दर्जन मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियां हटा दी थीं। उन्होंने मंदिरों के परिसर के बाहर मूर्तियां रख दीं और संदेश दिया कि साईं बाबा चांद मियां हैं। उन्होंने घोषणा की कि अगस्त्य कुंड और भूतेश्वर मंदिरों सहित 50 और मंदिरों से साईं बाबा की मूर्ति हटाई जाएंगी। यह भी घोषणा की थी, कि काशी में केवल भगवान शिव की पूजा की जाएगी।
विवाद की जड़
साईं बाबा को कई लोग संत मानते हैं, लेकिन कुछ हिंदू संगठनों का मानना है कि साईं की प्रतिमा को देवता का रूप देकर मंदिरों में स्थापित करना गलत है। उनका तर्क है कि साईं बाबा का उल्लेख किसी भी प्रामाणिक हिंदू धर्मग्रंथ में नहीं मिलता है, और इसलिए उन्हें मंदिरों में देवता के रूप में प्रतिस्थापित करना हिंदू परंपराओं के खिलाफ है।
कुछ लोगों का कहना है कि साईं की मूर्तियों को हटाना तो दूर, उन्हें स्थापित करना ही एक गलती थी। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया, “किसी भी हिंदू मंदिर में साईं की प्रतिमा लगाकर उन्हें देवता के रूप में मानना हमारे समाज के लिए शर्म की बात है। जितना जल्दी हो सके, काशी के सारे मंदिरों से उनकी प्रतिमा को हटाया जाना चाहिए।”
अजय शर्मा की गिरफ्तारी: सही या गलत?
अजय शर्मा की गिरफ्तारी ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है। उनका समर्थन करने वाले लोग इसे सनातन धर्म का अपमान मानते हैं। उनका कहना है कि सनातन धर्म की रक्षा करने वाले को गिरफ्तार करना अन्याय है। एक समर्थक ने कहा, “सनातन धर्म का समर्थन करने वाले के साथ इस तरह का अन्याय नहीं होना चाहिए।”
दूसरी ओर, कुछ लोगों का मानना है कि कानून का पालन करते हुए प्रतिमा हटाने का यह प्रयास सही था, और अजय शर्मा की गिरफ्तारी कानून के अनुसार उचित है।
साईं भक्तों की प्रतिक्रिया
साईं बाबा के अनुयायियों के लिए यह मुद्दा एक भावनात्मक रूप से संवेदनशील विषय है। वे साईं बाबा को एक संत और गुरु मानते हैं, और उनकी पूजा को अन्य धर्मों के पूजा स्थलों में स्थापित मूर्तियों के समान महत्व देते हैं। उनका मानना है कि साईं बाबा ने अपने जीवन में सभी धर्मों का सम्मान किया और उनके अनुयायी किसी भी मंदिर में उनकी मूर्ति स्थापित करने के लिए स्वतंत्र होने चाहिए।
भविष्य की राह
इस मुद्दे पर विचार करते हुए कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि जब साईं की प्रतिमाएं विभिन्न मंदिरों में स्थापित की जा रही थीं, तब प्रशासन, समाज, और मीडिया की चुप्पी क्यों थी? अब जब इन प्रतिमाओं को हटाने का प्रयास हो रहा है, तो क्या यह कदम उचित है?
विवाद का समाधान ढूंढना आसान नहीं है, क्योंकि दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। हालांकि, यह जरूरी है कि इस मुद्दे पर एक संतुलित और कानूनी दृष्टिकोण अपनाया जाए ताकि धार्मिक भावनाओं का सम्मान हो सके, और समाज में शांति बनी रहे।
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