बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार: एक संवेदनशील स्थिति
बांग्लादेश में हिन्दुओं पर बढ़ते अत्याचार और दमन के हालात पर चिंता जताना आज की आवश्यकता बन चुकी है। इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दू समुदाय के खिलाफ हिंसा की घटनाएं, उनकी धार्मिक अस्मिता पर हमले और सामाजिक बहिष्करण के प्रयासों ने बांग्लादेश में साम्प्रदायिक तनाव को और बढ़ा दिया है। यह स्थिति विशेष रूप से शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के बाद से और मोहम्मद यूनुस की सरकार आने के बाद भी विकराल रूप में सामने आई है, जिसमें हिन्दू समुदाय के अधिकारों की गंभीर अनदेखी की जा रही है।
1. हिन्दुओं को नौकरियों से निकालना
बांग्लादेश में सरकारी और निजी संस्थाओं में हिन्दू कर्मचारियों को लक्षित किया जा रहा है। कई रिपोर्ट्स में यह देखा गया है कि हिन्दू कर्मचारियों को उनके धर्म के आधार पर नौकरी से निकाला जा रहा है, जबकि वे अपनी सेवाएं ईमानदारी से दे रहे थे। कट्टरपंथी ताकतें उन्हें कार्यस्थलों से बाहर करने के लिए दबाव बना रही हैं, जिससे उनका जीवन यापन मुश्किल हो गया है। यह स्थिति खासकर सरकारी विभागों में ज्यादा देखने को मिल रही है, जहां हिन्दू कर्मचारियों को धार्मिक और नस्लीय आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
2. कट्टरपंथियों द्वारा मंदिरों में तोड़फोड़
बांग्लादेश में हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए मंदिर और पूजा स्थल हमेशा से आस्था का केंद्र रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में इन पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। कट्टरपंथी समूहों द्वारा हिन्दू मंदिरों में तोड़फोड़, मूर्तियों को अपवित्र करना और धार्मिक पूजा स्थलों को नष्ट करना एक सामान्य घटना बन चुकी है। यह घटनाएं केवल हिन्दू समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हैं, बल्कि समाज में असहिष्णुता और धार्मिक असमानता को बढ़ावा देती हैं। हाल के समय में बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में इस प्रकार की घटनाओं ने हिन्दू समुदाय को असुरक्षित बना दिया है।
3. हिन्दुओं के घरों में आग लगाना
धार्मिक आधार पर उत्पीड़न की एक और दुखद घटना यह रही है कि हिन्दुओं के घरों को निशाना बनाकर उनमें आग लगाई गई है। इन घटनाओं में न केवल उनके घरों का नुकसान हुआ है, बल्कि यह पूरी तरह से समाज में डर और घृणा का माहौल उत्पन्न कर रहा है। हिन्दू परिवारों को न केवल अपनी संपत्ति की हानि का सामना करना पड़ता है, बल्कि उनका जीवन भी संकट में डाल दिया जाता है। इस तरह की घटनाएं बांग्लादेश में साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देती हैं और हिन्दू समुदाय को अपने ही देश में असुरक्षित महसूस करने पर मजबूर करती हैं।
बांग्लादेश सरकार की भूमिका
हिन्दू समाज के प्रति इस संवेदनहीन रवैये के कारण न केवल इन समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि यह देश के सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर कर रहा है।
बांग्लादेश सरकार ने कई बार यह दावा किया है कि वह साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए प्रयासरत है, लेकिन वास्तविकता यह है कि जिस तरह से कट्टरपंथी ताकतें बढ़ रही हैं और हिन्दू समुदाय पर हमले हो रहे हैं, वह सरकार की नीतियों और कानून व्यवस्था की विफलता को उजागर करता है।
खबर यह भी है कि पुलिस और सेना ने इस दौरान स्थानीय हिन्दू समुदाय पर अत्यधिक बल प्रयोग किया और इलाके के CCTV कैमरे तोड़ दिए। यह घटनाएं और दावे इस बात को उजागर करते हैं कि बांग्लादेश में साम्प्रदायिक असहमति की स्थिति कहीं न कहीं असंतुलित और अपारदर्शी हो चुकी है।
यह समय है कि बांग्लादेश सरकार और समाज दोनों को इस गंभीर स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। अगर बांग्लादेश को एक धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है, तो कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, धार्मिक और सामाजिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा, जागरूकता और कानूनी सुरक्षा को मजबूत किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे घटनाओं से बचा जा सके।
बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या पर मोदी सरकार चुप क्यों है?
भारत सरकार या मोदी का वर्तमान अधिकारियों (न्यायपालिका, सशस्त्र बल, प्रशासक) पर कोई प्रभाव नहीं है। वे कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से या जबरन हस्तक्षेप करके संपर्क करने की स्थिति में नहीं हैं। क्योंकि, रिपोर्टों के अनुसार, पश्चिम(यूरोप) , पाकिस्तान और चीन सभी की इसमें भूमिका है। सबके अपने-अपने हित हैं। कोई भी हमारी मदद नहीं कर सकता; कोई भी फंसे हुए हिंदुओं की मदद नहीं कर सकता।
अब तक के काम देख कर के तो लगता है कि संयुक्त राष्ट्र एक नकली संगठन है। यह कभी किसी समस्या का समाधान नहीं करता। विश्व मानवाधिकार निकाय कभी हिंदुओं की परवाह नहीं करते। वास्तव में यह हिंदुओं के खिलाफ है। वे कभी पाकिस्तानियों द्वारा हिंदुओं पर किए गए अत्याचारों के बारे में बात नहीं करते। हां। हिंदुओं को हमारे देवताओं सहित सभी ने त्याग दिया है। हमारा दिल खून से लथपथ है। कोई बचाने वाला नहीं है।
लेकिन मुझे लगता है कि हमारे लिए और भी खतरा इंतजार कर रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सहयोगी खुशी-खुशी कह रहे हैं कि भारत में भी ऐसा ही होगा। शरणार्थियों को संभालने में हमें एक और बड़ी समस्या का सामना करना पड़ सकता है, यदि इस आग को तुरंत नहीं बुझाया जा सका। हमारे देश के गद्दार और उनके आका एक पक्की योजना और ब्लू प्रिंट के साथ तैयार हो सकते हैं।
आपसे सवाल ?
बाबा बागेश्वर, पवन कल्याण जैसे कुछ हिन्दुत्व के समर्थक नेता और कुछ साधु संतों को छोड़ राज्यों के सभी मुख्यमंत्री चुप हैं, सभी मंत्री और अन्य राजनेता चुप हैं। यहाँ तक कि श्री जयशंकर ने भी अपने बयान में “अल्पसंख्यक” शब्द का इस्तेमाल किया है, न कि “हिंदू”। उनके अलावा, किसी नौकरशाह, किसी न्यायाधीश, किसी “प्रसिद्ध” शिक्षक, किसी सेलिब्रिटी, किसी उद्योगपति ने हिंदुओं के लिए आवाज़ नहीं उठाई है। बहुत कम यूट्यूबर ने आवाज़ उठाई है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। ये सभी लोग हिंदू हैं और फिर भी उन्होंने चुप्पी साध रखी है। विपक्षी पार्टी से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती, उम्मीद नहीं है कि राहुल, अखिलेश, ममता, उद्धव या अन्य राजनेता आवाज़ उठाएँगे। लेकिन भाजपा चुप क्यों है? क्या हम अपने हिंदू भाइयों की पीड़ा के प्रति सुन्न हो गए हैं? या फिर किसी बड़े तूफान के आने से पहले की शांति ?
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